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अब प्रसव केंद्रों पर होगी कंप्रीहेंसिव न्यूबॉर्न स्क्रीनिंग, नवजात शिशुओं की समुचित देखभाल आवश्यक

• राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत होगी स्क्रीनिंग

• चिकित्सकों को दिया जाएगा प्रशिक्षण

छपरा,2अप्रैल। जिले में शिशु स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग के द्वारा लगातार प्रयास किया जा रहा है। अब राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत प्रसव कक्ष पर कंप्रीहेंसिव न्यूबार्न स्क्रीनिंग शुरू की जाएगी। इसको लेकर प्रत्येक जिले से दो-दो चिकित्सकों का राज्यस्तर पर दो दिवसीय उन्मुखीकरण किया जायेगा। इस संबंध में राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक संजय कुमार सिंह ने पत्र जारी कर सिविल सर्जन को आवश्यक दिशा-निर्देश दिया है। एक शिशु रोग विशेषज्ञ तथा एक प्रसुति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ को प्रशिक्षण दिया जायेगा। जिला स्तर पर बेहतर समन्वय स्थापित करने के लिए केयर इंडिया के प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण दिया जायेगा। 4 और 5 अप्रैल को यह प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया जायेगा। जन्म के बाद कम से कम 24 घंटे तक सभी महिलाओं और शिशुओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं में उच्च गुणवत्ता देखभाल शामिल है। उदाहरण के लिए, चेकअप का हिस्सा बनकर साथी की भागीदारी को प्रोत्साहित करना। साथ ही महिला को सहायता प्रदान करना ,नवजात शिशु की देखभाल करना और प्रसवोत्तर मातृ अवसाद और चिंता के लिए स्क्रीनिंग करना।

नवजात शिशुओं की समुचित देखभाल आवश्यक:

सिविल सर्जन डॉ. सागर दुलाल सिन्हा ने बताया कि प्रसव के बाद नवजात के बेहतर देखभाल की जरूरत बढ़ जाती है। संस्थागत प्रसव के मामलों में शुरुआती दो दिनों तक मां और नवजात का ख्याल अस्पताल में रखा जाता है। लेकिन गृह प्रसव के मामलों में पहले दिन से ही नवजात को बेहतर देखभाल की जरूरत होती है। शिशु जन्म के शुरूआती 42 दिन अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। सही समय पर नवजात की बीमारी का पता लगाकर उसकी जान बचायी जा सकती है। इसके लिए खतरे के संकेतों को समझना जरूरी होता है। खतरे को जानकर तुरंत शिशु को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र ले जायें।

 

इन लक्षणों की पहचान जरूरी:

• शिशु को सांस लेने में तकलीफ हो

• शिशु स्तनपान करने में असमर्थ हो

• शरीर अधिक गर्म या अधिक ठंडा हो

• शरीर सुस्त हो जाए

• शरीर में होने वाली हलचल में अचानक कमी आ जाए

 

शिशुओं के स्वास्थ्य को परखा जायेगा:

• शिशु का वजन, लंबाई और सिर की चौड़ाई मापी जाती है।

• हाथ और पैर की उंगलियां गिनी जाती और देखा जाता है कि शरीर का कोई हिस्सा या नैन-नक्श असामान्य तो नहीं है।

• छूकर शिशु के अंदरूनी अंगों जैसे कि किडनी, लिवर और प्लीहा की जांच की जाती है।

• बच्चे के रिफ्लेक्सेस, हिप रोटेशन और अम्बिलिकल स्टंप देखी जाती है।

• शिशु के पेशाब और पॉटी की भी जांच होती है।

• अस्पताल से डिस्चार्ज होने से पहले शिशु को विटामिन का इंजेक्शन और कभी-कभी हेपेटाइटिस-बी की वैक्सीन का पहला टीका दिया जाता है।

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