Search
Close this search box.

कालाजार के पीकेडीएल मरीजों को 12 सप्ताह तक नियमित दवा सेवन करना जरूरी

• प्रत्येक सप्ताह किया जाता है मरीजों का फॉलोअप
• सतर्कता और स्वच्छता अपनाकर रहें कालाजार से सुरक्षित
• 10-12 साल तक जांच में पॉजिटिव आती है रिपोर्ट
न्यूज4बिहार/छपरा: जिला अब कालाजार उन्मूलन की ओर अग्रसर है। जिले को कालाजार मुक्त घोषित किया जायेगा। इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग के द्वारा विभिन्न स्तर पर प्रयास किया जा रहा है। कालाजार एक संक्रामक बीमारी है, जो परजीवी लिशमैनिया डोनोवानी के कारण होती है। यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलती है। जिसका मुख्य वजह बालू मक्खी का काटना होता है। इसका मुख्य लक्षण बुखार, बदन में दर्द होना है। लंबे दिनों तक बुखार से पीड़ित होने के साथ साथ कमजोरी का लक्षण पाए जाने वाले लोगों को तुरंत कालाजार की जांच करायी जाती है। ताकि समय रहते कालाजार की पहचान हो सके। चिकित्सकों की मानें तो रोगी के द्वारा बीच में दवा छोड़ देने या समय पर सही खुराक न लेने से इसकी संभवना बढ़ जाती है।

एक सप्ताह पर किया जाता है पहला फॉलोअप :
जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. दिलीप कुमार सिंह ने बताया पीकेडीएल के मरीज को दवा देने के बाद पहले सप्ताह में बुलाया जाता है। जहां मरीज की जांच कर पता लगाया जाता है कि रोगी को दवा पच रही है कि नहीं। रोगी को यह बताते हैं कि दवा बीच में बंद नहीं करनी है। हमेशा कुछ खाने के बाद ही दवा लेनी है। पूरे 12 सप्ताह तक नियमित रूप से दवा का सेवन करना है। पहले मरीज को 15 दिन की दवा देते और उसे फिर मिलने को कहते हैं। इस बीच उसका फॉलोअप जारी रखते हैं। उन्होंने बताया कि कालाजार अगर किसी को दुबारा हो जाए तो आरके-39 (रैपिड डिटेक्शन किट) की जगह स्प्लीनिंग पंक्चर या बोन मैरो के जरिये लिशमैनिया डोनोवेनाइल (एलडी बॉडी) की खोज की जाती है, क्योंकि आरके-39 से टेस्ट में देखा गया है कि उसमें लगातार 10-12 साल तक मरीज को कालाजार पॉजिटिव बताता रहता है।

कोशिकाओं को संक्रमित करता है परजीवी :
पीकेडीएल यानि त्वचा का कालाजार एक ऐसी स्थिति है, जब एलडी बॉडी नामक परजीवी त्वचा कोशिकाओं पर आक्रमण कर उन्हें संक्रमित कर देता और वहीं रहते हुए विकसित होकर त्वचा पर घाव के रूप में उभरने लगता है। इस स्थिति में कालाजार से ग्रसित कुछ रोगियों में इस बीमारी के ठीक होने के बाद त्वचा पर सफेद धब्बे या छोटी-छोटी गांठें बन जाती हैं। त्वचा सम्बन्धी लिश्मेनियेसिस रोग एक संक्रामक बीमारी है, जो मादा फ्लेबोटोमिन सैंडफ्लाइज प्रजाति की बालू मक्खी के काटने से फैलती है। बालू मक्खी कम रोशनी और नमी वाले स्थानों जैसे मिट्टी की दीवारों की दरारों, चूहे के बिलों तथा नम मिट्टी में रहती है। इसलिए सावधानी बरतनी जरूरी है।

सतर्कता और स्वच्छता अपनाकर रहें कालाजार से सुरक्षित:
वेक्टर जनित रोग सलाहकार सुधीर कुमार ने बताया कि कालाजार बालू मक्खी से फैलता है और इसका मुख्य लक्षण बुखार, बदन में दर्द होना है। उन्होंने बताया कि लंबे दिनों तक बुखार व साथ साथ कमजोरी का लक्षण पाए जाने वाले लोगों को तुरंत कालाजार की जांच करायी जाती । ताकि समय रहते कालाजार की पहचान हो सके। उन्होंने लोगों से यह भी अपील की है कि जिनको भी इस तरह के लक्षण दिखाई दे तो कालाजार की जांच जरूर करवाएं और चिकित्सीय परामर्श लेकर दवा का सेवन करें।

Leave a Comment